शब्द का अर्थ
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धान्य :
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पुं० [सं०धान+यत्] १. अनाज। अन्न। गल्ला। २. ऐसा चावल जिसका छिलका निकाला न गया हो। धान। पद—धन-धान्य=आर्थिक संपत्ति और खाने-पीने के समस्त पदार्थ या साधन। ३. धनियाँ। ४. प्राचीन काल की चार तिलों के बराबर एक तौल या परिमाण। ५. केवटी मोथा। ६. एक प्रकार का प्राचीन अस्त्र। |
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धान्य-कूट :
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पुं०=धान्य-कोष्ठक। |
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धान्य-कोष्ठक :
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पुं० [ष० त०] अनाज रखने के लिए बना हुआ बड़ा बरतन। कोठिला। गोला। |
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धान्य-चमस :
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पुं० [मयू० स०] चिड़वा। |
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धान्य-धेनु :
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स्त्री० [मध्य० स०] अन्न की ढेरी जिसे गौ मानकर दान किया जाता था। |
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धान्य-पंचक :
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पुं० [ष० त०] १. शालि, ब्रीहि, शूक, शिंबी और क्षुद्र ये पाँच प्रकार के धान। २. वैद्यक में एक प्रकार का तैयार किया हुआ पानी जो पाचक कहा गया है। ३. वैद्यक में एक प्रकार का औषध। |
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धान्य-पति :
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पुं० [ष० त०] १. चावल। २. जौ। |
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धान्य-पानक :
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पुं० [मध्य० स०] एक प्रकार का पन्ना या पेय पदार्थ जो धनिये के योग से बनाया जाता है। |
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धान्य-बीज :
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पुं० [ष० त०] धनिये के बीज। |
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धान्य-भोग :
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पुं० [सं०] ऐसी उपजाऊ भूमि जिसमें अन्न बहुत अधिक मात्रा में उत्पन्न होता हो। |
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धान्य-मुख :
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पुं० [ब० स०] चीर-फाड़ करने का एक प्राचीन उपकरण। (सुश्रुत) |
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धान्य-मूल :
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पुं० [ब० स०] काँजी। |
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धान्य-यूष :
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पुं० [ष० त०] काँजी। |
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धान्य-योनि :
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स्त्री० [ब० स०] काँजी। |
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धान्य-राज :
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पुं० [ष० त०] जौ। |
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धान्य-वर्धन :
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पुं० [ब० स०] अन्न उधार देने की वह रीति जिसमें मूल और ब्याज दोनों अन्न के रूप में ही लिया जाता था। |
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धान्य-वाप :
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पुं० [ब० स०] ऐसी उपजाऊ भूमि जहाँ अन्न बहुतायत से पैदा होता हो। |
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धान्य-वीज :
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पुं० [ष० त०] १. धान का बीज। २. [ब० स०] धनियाँ। |
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धान्य-वीर :
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पुं० [स० त०] उड़द। माष। |
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धान्य-शर्करा :
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स्त्री० [मध्य० स०] चीनी मिला हुआ धनिए का पानी जो अंतर्दाह शांत करने के लिए पीया जाता है। |
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धान्य-शीर्षक :
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पुं० [ष० त०] गेहूँ, धान आदि पौधों की बाल। |
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धान्य-शैल :
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पुं० [मध्य० स०] दान करने के निमित्त लगाई हुई अन्न की बहुत बड़ी ढेरी। |
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धान्य-सार :
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पुं० [ष० त०] चावल। |
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धान्यक :
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पुं० [सं० धान्य+कन्] १. धनियाँ। २. धान। |
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धान्यचारी (रिन्) :
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पुं० [सं० धान्य√चर् (गति)+णिनि] चिड़िया। पक्षी। |
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धान्यजीवी (विन्) :
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वि० [सं० धान्य√जीव् (जीना)+णिनि] धान्य खाकर जीवन-निर्वाह करनेवाला। पुं० चिड़िया। पक्षी। |
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धान्यतुषोद :
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पुं० [सं०] काँजी। |
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धान्यमालिनी :
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स्त्री० [सं०] रावण के दरबार की एक राक्षसी जिसे उसने जानकी को बहकाने के लिए नियुक्त किया था। |
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धान्यमाष :
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पुं० [सं०] अन्न मापने का एक प्राचीन परिमाण। |
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धान्या :
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स्त्री० [सं० धान्य+टाप्] धनिया। |
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धान्याक :
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पुं० [सं० धान्य√अक् (गति)+अण्] धनिया। |
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धान्याचल :
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पुं० [धान्य-अचल, मध्य० स०]=धान्य-शैल। |
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धान्याभ्रक :
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पुं० [सं०] १. वैद्यक में भस्म लगाने के लिए धान की सहायता से शोधा और साफ किया हुआ अभ्रक। २. उक्त प्रकार से अभ्रक शोधने की क्रिया। |
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धान्याम्ल :
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पुं० [धान्य-अम्ल, मध्य० स०] काँजी। |
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धान्याम्लक :
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पुं० [सं० धान्याम्ल+कन्] धान से बनी हुई काँजी। |
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धान्यारि :
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पुं० [धान्य-अरि, ष० त०] धान का शत्रु, चूहा। |
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धान्यार्थ :
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पुं० [धान्य-अर्थ, मध्य० स०] अन्न या धान के रूप में होनेवाली संपत्ति। |
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धान्याशय :
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पुं० [धान्य-आशय, ष० त०] अन्नशाला। अन्न का भंडार। |
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धान्यास्थि :
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स्त्री० [धान्य-अस्थि, ष० त०] धान का छिलका। भूसी। |
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धान्योत्तम :
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पुं० [धान्य-उत्तम, स० त०] उत्तम प्रकार का धान, शालि। |
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